ठोसों का ऊर्जा बैंड के आधार पर वर्गीकरण

ठोसों को बैंड सिद्धांत के आधार पर चालकों, कुचालकों तथा अर्धचालकों में विभेद किया जा सकता है तथा विभिन्न ठोसों की विद्युत चालकता में अंतर उनके संयोजी बैंड तथा चालन बैंड तथा उनके मध्य ऊर्जा अंतराल के आधार पर किया जाता है जब संयोजी बैंड से इलेक्ट्रॉन चालन बैंड में जाते हैं तो ठोस में विद्युत प्रवाहित होती हैै।


चालक :- चालक में संयोजी बैंड तथा चालन बैंड एक दूसरे पर अतिव्यापित होते हैं या कहें कि चालन बैंड तथा संयोजी बैंड के बीच ऊर्जा अंतराल नहीं होता है।
ऊर्जा के अतिव्यापित भाग के इलेक्ट्रॉन को चालन इलेक्ट्रॉन कहते हैं क्योंकि चालन इलेक्ट्रॉन की संख्या बहुत अधिक होती है जिससे वह विद्युत के सुचालक होते हैं।
Band Theory Hindi
           चालक                                                   अचालक                                   अर्द्धचालक










कुचालक :-  कुचालक में संयोजी बैंड इलेक्ट्रॉन से पूर्ण पूरित होते हैं तथा चालन बैंड रिक्त होते हैं, जिनमें संयोजी बैंड तथा चालन बैंड के मध्य उर्जा अंतराल का मान 3ev से अधिक होता है।
कुचालक में धारा तभी प्रवाहित हो सकती है जब संयोजी बैंड से इलेक्ट्रॉन चालन बैंड में गति करें परंतु कमरे के ताप पर संयोजी बैंड की ऊर्जा लगभग नगण्य होती हैै।
यह ऊर्जा वर्जित अंतराल की तुलना में बहुत कम होती है इस कारण संयोजी बैंड के इलेक्ट्रॉन चालन बैंड तक नहीं पहुंच पाते इसी के कारण कुचालक में विद्युत धारा प्रवाहित नहीं हो पाती है।


अर्ध्दचालक :-  अर्धचालक वे पदार्थ होते हैं जिनमें ऊर्जा अंतराल का मान कुचालकों से कम किंतु चालकों से अधिक होता है अर्थात,
ऊर्जा अंतराल < 3ev 
(जो कि कुचालकों में पाए जाने वाले ऊर्जा अंतराल से कम है)

 परम शून्य ताप पर इन पदार्थों की संयोजी इलेक्ट्रॉन संयोजी बैंड में ही रहते हैं इस कारण कोई मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्यमान नहीं होने के कारण इस अवस्था में यह पदार्थ कुचालक की भांति व्यवहार करते हैं अर्थात परम शून्य ताप पर इनकी चालकता शून्य होती है।

अर्धचालक का प्रतिरोध उतना अधिक नहीं होता जितना विद्युतरोधी पदार्थों का होता है लेकिन सामान्य ताप पर संयोजी बैंड के इलेक्ट्रॉन इतनी उर्जा प्राप्त कर लेते हैं कि वे चालन बैंड में पहुंच जाएं क्योंकि इन पदार्थों का ऊर्जा अंतराल कम होने के कारण संयोजी बैंड के इलेक्ट्रॉन जल्द ही मुक्त इलेक्ट्रॉन की भांति व्यवहार करने लगते हैं अतः सामान्य ताप पर ये पदार्थ चालक की तरह व्यवहार करने लगते हैं ।

परम शून्य ताप पर कुचालक तथा सामान्य ताप पर चालक की भांति व्यवहार करने के कारण इन्हें अर्धचालक कहते हैं।






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